अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की सार्थकता

नारी सुरक्षा एवं सम्मान 21 वी सदी के सर्वाधिक ज्वलंत प्रश्नों में से एक है। विकास और आधुनिकता के चरम पर प्रतिष्ठत आज का समाज सुरक्षित और सम्मानजनक ढंग से जीवन जीने के नारी के मूलभूत अधिकार को संरक्षित करने में असमर्थ प्रतीत हो रहा है। विभिन्न सरकारी एवं गैरसरकारी संगठनों के अनवरत प्रयासों के उपरांत भी अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने व नारी सशक्तिकरण पर विचार मंथन करने की आवश्यकता आज भी अनुभूत की जा रही है जो अपने आप मे यह इंगित करता है कि मंजिल अभी दूर ही है, वस्तुतः समस्या का समाधान जड़ो में खोजना होगा कानून, नियम व सिद्धांत समस्या का स्थाई समाधान नही है।आज हम पढ़ी लिखी व आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर महिला को सुरक्षित व सशक्त मान लेते है किंतु यह सशक्तिकरण का एक कदम मात्र है। दरअसल हमारे सामाजिक ढांचे में महिलाओं की मुश्किलें बड़ी व्यावहारिक सी है, जिसका समाधान मात्र आर्थिक आत्मनिर्भरता में नही ढूढ़ा जा सकता।महिला सशक्तिकरण अस्मिता की रक्षा व सामाजिक सरोकार का संघर्ष है।
सुरक्षित व सम्मानजनक ढंग से जीवन जीने की लड़ाई है। महिलाओं की स्तिथि में विगत कुछ दशकों से सकारात्मक बदलाव आया है, किन्तु यह बदलाव सतही ज्यादा है ।एक पढ़ी लिखी व आत्मनिर्भर नारी भी अपने अधिकारों की सुरक्षा को लेकर आश्वस्त नही है। नारी सुरक्षा और सम्मान के संरक्षण के लिए समाज की मानसिकता में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है। यह परिवर्तन मात्र कानून बनाने से प्राप्त नही किया जा सकता।इसके किये वैचारिक क्रांति लाने की आवश्यकता है।वस्तुतः शिक्षा ही समाज की मनोचिकित्सा कर इस समस्या का स्थायी हल खोज सकती है। प्रारंभ घर की शिक्षा से करना होगा ।संस्कारों में नारी सम्मान के बीज रोपने होंगे। शिक्षा संस्थानों को अहम भूमिका निभानी होगी।आवश्यकता आत्मचिंतन और आत्मावलोकन की है। शिक्षा व संस्कारों के पुनर्मूल्यांकन की है क्योंकि शिक्षा ही एकमात्र ऐसा माध्यम है जो समाज की दुर्गन्धित मानसिकता को विनष्ट कर इस समस्या का लक्ष्य भेदक हल खोज सकती है ।मात्र बाह्य आक्रोश से इस यक्ष प्रश्न का समुचित हल खोज पाना संभव नही है।

डॉ दीप्ति वाजपेयी
एसो० प्रो ० संस्कृत
कु० मायावती राजकीय महिला स्नातकोत्तर
महाविद्यालय बादलपुर

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