महाविद्यालय में त्रिदिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया

कु.मायावती राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय,बादलपुर और गौतम बुद्ध विश्विद्यालय, ग्रेटर नोएडा के संयुक्त सौजन्य से तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन दिनाँक 31 जनवरी से 02 फरवरी 2020 तक "प्राचीन ज्ञान,सभ्यता के पुरावशेष और वर्तमान विश्व के परिदृश्य " शीर्षक पर किया गया l

अखिल भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद व उच्च शिक्षा विभाग,उत्तर प्रदेश द्वारा प्रायोजित इस संगोष्ठी में देश विदेश के सैंकड़ों विद्वानों एवम शोधकर्ताओं को उपस्थिति एवम सहभागिता सराहनीय रही। संगोष्ठी का शुभारंभ 31 जनवरी 2020 को गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय के ऑडिटोरियम में हुआ।

कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय की डीन ऐकडेमिक प्रो.श्वेता आनंद द्वारा स्वागत उदबोधन प्रस्तुत किया गया।उनके उपरान्त कु.मायावती राजकीय महिला महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो.दिव्या नाथ ने विषय की विषयवस्तु के संदर्भ में अपने विचार प्रस्तुत किये गए।

अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के मुख्य आयोजक व कु.मायावती राजकीय महिला महाविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. किशोर कुमार ने सभागार को विषय पृष्ठभूमि परिचित कराया। वियतनाम विश्वविद्यालय से पधारे डॉ. थिच न्यूवेन डट ने अपने विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति के संदेश से सभागार को अवगत कराया । जे.नंदकुमार,राष्ट्रीय संयोजक, प्रज्ञा-प्रवाह ने भारतीय सांस्कृतिक ज्ञान को परा-अपरा विद्या से जोड़ा।

मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित श्री महेश चंद शर्मा (चेयरमैन, रिसर्च एंड डेवलपमेंट फाउंडेशन फॉर इंटीग्रल ह्यूमेनिज़्म, ए.बी.आर.एस.एम.) ने सीविलाइजेशन का अर्थ प्राचीन मनीषा से जोड़ा और कहा कि “सत्य वदं, धर्मम् चर, स्वाध्याय प्रवद भारतीय संस्कृत्ति का सत्य है और सत्य का अनुभव सदैव आंतरिक एवम आध्यात्मिक होता है। अध्यक्षीय भाषण में गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. भगवती प्रकाश शर्मा ने प्राचीन प्रज्ञा में संसार के सभी ज्ञान को समाहित माना तथा विभिन्न संग्रहालयों में अपठित लगभग सवा करोड़ पाण्डुलिपियों को पढ़ने की आवश्यकता पर जोर दिया।

मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान संकाय की अधिष्ठाता ने सभी अतिथियों को स्क्रोल तथा नटराज मूर्ति से सम्मानित किया। अंत में डॉ. विनोद कुमार शानवाल (विभागाध्यक्ष, एजुकेशन एंड ट्रेनिंग, गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय ) धन्यवाद ज्ञापन दिया। उद्घाटन सत्र के बाद पैनल डिस्कशन भी हुआ

जिसमें महेश चन्द शर्मा, प्रो. वेद प्रकाश त्रिपाठी, प्रो. शकुन्तला नागपाल, डॉ. थिच न्यूवेन डट, प्रो.संगीत रागी ने सभा में रोचक विमर्श पैदा किया। इसके उपरांत विभिन्न तकनीकी सत्रों में देश- विदेश से उपस्थित हुए शोधार्थियों एवं विद्वानों ने विषय के विभिन्न आयामों से संबंधित शोध-पत्र प्रस्तुत किए।

वक्ताओं से प्रश्नों के माध्यम से श्रोताओं की जिज्ञासाओं को भी शांत किया गया। अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के द्वितीय दिवस प्रथम तकनीकी सत्र की अध्यक्षता एस.वी.एस. विश्वविद्यालय,गुरुग्राम के वाईस चांसलर प्रोफेसर राज नेहरू द्वारा की गई।

प्रोफेसर राज नेहरू ने सनातन तत्व को अन्तः विश्लेषण के माध्यम से खोजने का आह्वाहन किया। उन्होंने ज्ञान के भारतीय सिद्धान्त को श्रेष्ठतम बताकर उसकी उसकी वर्तमान प्रासंगिकता को स्पष्ट किया।

मुख्य विषय वक्ता के रुप में भारतीय विद्या भवन की इंडोलॉजिस्ट डॉ. शशिबाला ने बौद्ध शिक्षा एवम स्मारकों की स्थापत्य कला के ऐतिहासिक दर्शन की व्याख्या प्रस्तुत की। इसके साथ साथ उनकी प्रस्तुति में बौद्ध दर्शन एवम हिन्दू दर्शन के समभाव को तथ्यों के साथ स्पष्ट किया गया। उनके उपरान्त फिज़ी विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर एस. एन.गुप्ता ने भारत के सनातन ज्ञान को विज्ञान के आधार के साथ साथ भारत की अदभुत अखंडता का प्रतीक बताया।

डॉ. एस. एन.गुप्ता ने राष्ट्र की अवधारणा को चिंतन के विभिन्न आयामों में स्पष्ट किया। विएतनाम से पधारे डॉ.ठीच नगुएँ दाट ने भारत एवम विएतनाम से दर्शन की ऐतिहासिक समानता को स्पष्ट किया। चौधरी चरण सिंह विश्विद्यालय की प्रो.वाईस चांसलर डॉ.वाई विमला ने ज्ञान के उदभव को विज्ञान के नियम से जोड़कर इस बात को स्पष्ट किया कि प्राचीन ज्ञान अपने आप मे प्रामाणिक विज्ञान ही है।

कु.मायावती राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय की संस्कृत आचार्या डॉ. दीप्ति वाजपेयी द्वारा मंच एवम सभागार को धन्यवाद ज्ञापित किया गया।मंच संचालन डॉ. स्वेता सिंह द्वारा किया गया। इसके उपरान्त विश्विद्यालय के विभिन्न ऑडिटोरियम कक्षों में तकनीकी सत्र आयोजित किये गए जहां देश विदेश से आये शोधकर्ताओं एवम शिक्षविदों ने अपने शोधपत्र प्रस्तुत किये।

हर शोध प्रस्तुतिकरण के उपरान्त प्रश्नोत्तरी संवाद ने संगोष्ठी को सार्थक साबित किया। हर तकनीकी सत्र में सर्वश्रेष्ठ शोध पत्र को सम्मानित भी किया गया। अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र की अध्यक्षता गौतम बुद्ध विश्विद्यालय के वाईस चांसलर प्रोफेसर भगवती प्रसाद शर्मा द्वारा की गई। अपने अद्यक्षीय संबोधन में उनके द्वारा ज्ञान के वैदिक आयामों की व्याख्या ने सभागार को सम्मोहित कर दिया। मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित "ऑर्गनाइजर" पत्रिका के मुख्य संपादक डॉ. प्रफुल केतकर ने भरतमुनि के नाट्यशास्त्र में रंग,पात्र और रस की व्याख्या बड़े ही व्यवहारिक रूप में प्रस्तुत की।

उन्होंने ब्रिटेन के राजनैतिक लोकतंत्र,अमेरिका के आर्थिक लोकतंत्र व भारत के आध्यात्मिक लोकतंत्र की क्रमबद्ध व्याख्या की जिसको सभागार का विशेष अनुमोदन प्राप्त हुआ।इसके उपरांत उच्च शिक्षा ,उत्तर प्रदेश शासन के जॉइंट निदेशक डॉ. राजीव पांडेय द्वारा विषय के संदर्भ में विषयगत व्याख्यान प्रस्तुत किया गया तथा अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के सफल व व्यवस्थित आयोजन हेतु आयोजकों को बधाई दी गई।

उनके उपरान्त क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी,मेरठ व सहारनपुर डॉ. राजीव गुप्ता ने वेदों को विज्ञान का आधार बताते हुए अपने विचार प्रस्तुत किये।

मंच का संचालन डॉ. आयुषी केतकर द्वारा किया गया तथा धन्यवाद ज्ञापन गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय की डीन ऐकडेमिक प्रोफ़ेसर श्वेता आनंद द्वारा दिया गया।

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